Description
डॉ० वेङ्कट राघवन् के रूपकों का नाट्यशास्त्रीय अध्ययन’ का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है जिसमें सर्वप्रथम डॉ० राघवन् के रूपकों अनार्कली, अवन्तिसुन्दरी, आषाढस्य प्रथमदिवसे, काम- शुद्धि, पुनरुन्मेष, प्रतापरुद्रविजय, महाश्वेता, रासलीला, लक्ष्मीस्वयंवर, विकटनितम्बा, विजयांका, विमुक्ति को एकत्रित कर अध्ययन एवं आंशिक अनुवाद अपेक्षित था। पुनः नाट्य- शास्त्रीय अध्ययन हेतु नाट्यशास्त्रीय ग्रंथों को आधार बनाया गया है। इस समालोचना में सर्वप्रथम भरतमुनि का नाट्यशास्त्र (तीसरी- दूसरी शताब्दी ई०पू०) दण्डी का काव्यादर्श (सातवीं शताब्दी का उत्तरार्ध) मम्मट का काव्यप्रकाश (1050-1100 ई०), धनञ्जय का दशरूपक (दसवीं शताब्दी), रामचन्द्र-गुणचन्द्र का नाट्य-दर्पण (बारहवीं शताब्दी), विद्यानाथ का प्रतापरुद्रीय (चौदहवीं शताब्दी), विश्वनाथ का साहित्य-दर्पण (चौदहवीं शताब्दी) शारदातनय का भावप्रकाशन (1175-1250 ई०), शिङ्गभूपाल का रसार्णवसुधाकर (तेरहवीं शताब्दी), सागरनन्दी का नाटक – लक्षणरत्नकोश (बारहवीं शताब्दी), पं० सीताराम चतुर्वेदी का अभिनवनाट्यशास्त्र (20वीं शताब्दी)। इन नाट्यशास्त्रीय ग्रंथों को आधार बनाया गया है।