Description
भारतीय मानव वर्ग का जीवन ज्योतिषशास्त्र की अमूल्य उपलब्धियों से सदैव प्रभावित रहा है। उपयोगिता की दृष्टि से इस शास्त्र का महत्व चिकित्साशास्त्र से न्यून नहीं है। आजकल के विज्ञान युग में भी इसकी चरितार्थता को देखकर भारत का शिक्षित समाज इसकी ओर आकृष्ट हो रहा है। किन्तु यह शास्त्र संस्कृत में निबद्ध होने के कारण और अनुवादित ग्रन्थों की अस्पष्टता के फलस्वरूप जनसाधारण के लिये दुर्बोध हो गया है। इस अभाव को पूर्ति के लिये भारत के विख्यात देवश चन्द्रदत्त पन्त ने ज्योतिषशास्त्र के अनेक ग्रन्थों का मनन करके प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ में ज्योतिषशास्त्र के सभी विषयों पर सुगम रीति से विचार हुआ है। यदि इस कृति को हम “ज्योतिषसारसंग्रह” कहें तो अत्युक्ति न होगी। इसमें ग्रहों की दशा, महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा निकालने की सरल विधि कही है और लग्नादि भावगत फलादेश के साथ-साथ ग्रहों की दृष्टि, योग, दीप्तांश, अवस्थाएं, उनकी साधनरीति, नाम, भेद एवं अनेकों चक्र दिये हैं। ज्योतिषशास्त्र के इस सर्वांगीण और सर्वोत्कृष्ट अध्ययन में सात सौ पृष्ठ लगे हैं।