Description
वेदव्याख्या के क्षेत्र में यह ग्रन्थ अपने प्रकार का प्रथम प्रयास है। सर्वप्रथम मन्त्र और उसका पदपाठ दिया गया है। पदपाठ के पश्चात् हिन्दी-अनुवाद और फिर संक्षिप्त व्याख्या दी गई है। जिस क्रम में मन्त्रों के पद है, उसी क्रम में उनका अनुवाद किया गया है। इससे पाठकों को शब्दों के अर्थों को समझने में सुविधा होगी। पदक्रम से किये गये अनुवाद ने छन्दोमुक्त कविता जैसा रूप ग्रहण कर लिया है, जिससे पाठकों को ऋग्वेद के हिन्दी काव्यपाठ का आनन्द भी प्राप्त होगा। संक्षिप्त व्याख्या के पश्चात् टिप्पणियों में प्राचीन एवं अर्वाचीन भाष्यकारों, व्याख्याकारों और अनुवादकों के मत दिये गये हैं। व्याख्या में लेखक की दृष्टि अध्यात्मपरक अथवा उपासनापरक अर्थ को स्पष्ट करने की रही है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये नामों और शब्दों की योगिक व्याख्या की गई है। भाषा और आलङ्कारिक प्रयोगों के रहस्य को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है। देवतानामों और शब्दों की प्रतीकात्मक व्याख्या की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। प्राचीन और अर्वाचीन भाषाविदों के सिद्धातों से व्याख्या में सहायता ली गई है। लुप्तकल (मससपचजपबंस) मन्त्रों में लुप्त पदों और वाक्यांशों को खोजकर मन्त्रार्थ की प्राप्ति का प्रयास किया गया है। असङ्गत अर्थ वाले वाक्यों में काकु से अर्थ को सङ्गति लगाई गई है। मन्त्रों और टिप्पणियों में सन्धि को अक्षुण्ण रखते हुए पदों को अलग-अलग करके रखा गया है। इससे ऋग्वेद के अध्येताओं और जिज्ञासुओं को जहाँ मन्त्रों के उच्चारण में सुविधा होगी, वहाँ अर्थ को समझने में भी सहायता मिलेगी।