Description
प्राचीन भारत में आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति बहुत ही उन्नत थी। इसका साहित्य भी बहुत ही समृद्ध एवं विविधतापूर्ण था। चिकित्सा को सर्वसुलभ एवं सुगम बनाने के लिए प्राचीनकाल से बहुत से संक्षिप्त एवं रोचक ग्रंथों की रचना की जाती रही है। अपने सुदीर्घ चिकित्सकीय अनुभव एवं आयुर्वेद के गहन अध्ययन के आधार पर योगऋषि परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने विशाल आयुर्वेद सागर का सारभूत अमृततत्त्व प्रस्तुत कर दिया है। इस पुस्तक में संक्षिप्त किन्तु प्रामाणिक रूप से किया गया आयुर्वेदीय चिकित्सा एवं मुख्य सिद्धांत का वर्णन बहुत ही सुगम व सर्वजनोपयोगी है। यह आयुर्वेद जगत के लिए विशेष रूप से उपादेय एवं स्पृहणीय है। आयुर्वेद के प्रणेता प्राचीन ऋषियों की सहिताओं के आलोक में इस जीवन्त चिकित्सा पद्धति में चिरानुभूत तथ्य एवं नित्य नये अन्वेक्षण प्रकट होते रहे हैं। लुप्त हो चुके महत्त्वपूर्ण संहिता ग्रन्थों के उदाहरण आयुर्वेदीय वागमय में यत्र-तत्र बिखरे पड़े हुए थे, जिन्हें पिछले 30 वर्षों से भी अधिक समय में प्रयत्नपूर्वक संकलित कर युग पुरुषों ने जीवनदायिनी दिव्य औषधियों के निर्माण करने में अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ किया है जो सम्पूर्ण मानव समाज के लिए एक अत्यन्त विशिष्ट आशीर्वाद है। योग, यज्ञ, आयुर्वेद एवं नेचुरोपैथी की सभी उपचार पद्धतियों का एक साथ पूर्ण समावेश करते हुए लगभग 250 प्रकार की विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों (थैरेपी) का पुस्तिका में समावेश है।