Description
शिक्षा वेदाङ्ग के अन्तर्गत महर्षि याज्ञवल्क्य द्वारा प्रणीत याज्ञवल्क्यशिक्षा ध्वनिविज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण शिक्षा ग्रन्थ है। शुक्लयजुर्वेद से सम्बद्ध इस शिक्षा का सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रचार है। इसके भाषावैज्ञानिक महत्त्व को देखते हुए शिक्षावल्ली संस्कृतटीका, हिन्दी-अनुवाद एवं विमर्श के साथ इसका नया संस्करण प्रस्तुत किया जा रहा है। इस ग्रन्थ की विस्तृत भूमिका में वेद एवं वेदाङ्गो का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करने के साथ-साथ भारत में भाषाविज्ञान की प्राचीनतम तथा उत्कृष्ट परम्परा का उल्लेख किया गया है। वेद, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् वाङ्मय में उपलब्ध वाक् की जगत्कारणता के सिद्धान्त का तथा वाक् के चतुर्धा विभाजन का सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत किया गया है। भूमिका में ही प्राचीन भारतीय भाषावैज्ञानिकों, विशेषत: शिक्षाकारों, वैयाकरणों तथा प्रातिशाख्यकारों के द्वारा भाषाविश्लेषण से प्राप्त निष्कर्षों की सर्वस्वीकार्यता का भी उल्लेख किया गया है। 11वीं शताब्दी का यूरोपीय भाषाविज्ञान अपने अस्तित्व में नहीं आता यदि उनका परिचय शिक्षा, व्याकरण एवं प्रातिशाख्य ग्रन्थों से नहीं हुआ होता। शिक्षा, प्रातिशाख्य आदि में प्रयुक्त कई पारिभाषिक शब्द अनूदित रूप में यूरोपीय भाषाविज्ञान में उन्हीं अर्थों में स्वीकार कर लिए गये हैं। यह तथ्य पारिभाषिक-शब्द-कोष परिशिष्ट से स्पष्ट है। विषय को स्पष्ट करने के लिए आवश्यकतानुसार विमर्श में ऋक्प्रातिशाख्य, तैत्तिरीयप्रातिशाख्य, शुक्लयजु:प्रातिशाख्य, पाणिनीयशिक्षा, नारदशिक्षा, वर्णरत्नप्रदीपशिक्षा, मल्लशर्मशिक्षा, अष्टाध्यायी, महाभाष्य, उव्वटभाष्य आदि का अनेक स्थलों पर उपयोग करने में अनुसन्धान प्रविधि का पूर्णरूपेण पालन किया गया है।