Description
मानवीय जीवनोपयोगी विद्या के प्रकाशक के रूप में मुनि काश्यप को बहुत प्राचीनकाल से ऋषिप्रज्ञा ने स्वीकार किया है। काश्यपकुलजात ऋषियों ने कृषि, वृक्ष और खनिजशास्त्र के साथ ही शिल्प कला के विकासकाल में अनेकत्र अपनी उपस्थिति दी है। काश्यपशिल्प मुख्य रूप से स्थापत्य और शिल्प के अनेकानेक विषयों का प्रतिनिधि प्रधान ग्रन्थ है इसके शब्द पूरी तरह पारिभाषिक हैं और सिद्धान्त के साथ ही प्रायोगिक-व्यावहारिक पृष्ठभूमि को पोषित करने लगते हैं। तन्त्रसमुच्चय के टीकाकार शंकर ने इसके अनेक मतों को उद्धृत किया है।